तब कौड़ियों के भी दाम थे

                


 


                     


               


मुद्राओं का आविष्कार होने से पहले मानव के लगभग सभी काम वस्तु-विनियम यानी चीजों की अदला-बदली से होती थी। पाषाण काल में अदला-बदली के लिए कठोर पत्थर के औजार-हथियार, मांस, अन्न, पशु, चमड़ा आदि चीजों का उपयोग होता था। प्रायः सभी प्राचीन सभ्यताओं में अदला-बदली के लिए पशुओं का व्यापक इस्तेमाल हुआ है। होमर युगीन ;ईसा-पूर्व 8वीं सदीद्ध यूनान में गाय-बैल और चमड़े के बदले मदिरा प्राप्त की जाती थी। हथियार भी प्रायः गाय-बैल के बदले ही खरीदे जाते थे। रोम के आरंभिक कानून में दंड का भुगतान सिक्कों से नहीं, बल्कि बैलों से करने की व्यवस्था थी। आध्ुनिक कैपिटल शब्द लैटिन के कैपिटा ;गाय-बैलद्ध से बना है।
ट्टग्वेद के कई साक्ष्य बताते हैं कि उस समय गाय ही विनिमय का प्रमुख माध्यम थी। एक स्थान पर इंद्र की प्रतिमा का मूल्य दस गाय बताया गया है। गो ;गाय या बैलद्ध शब्द ध्न का सूचक था। गोध्न शब्द आज भी प्रचलित है। पाणिनि की अष्टाध्यायी में भी विनियम-माध्यम के रूप में इस्तेमाल होने वाली चीजों के रूप में वसन ;वस्त्राद्ध के बदले वासन ;बासन या बर्तनद्ध प्राप्त करने की सूचना मिलती है। हिंदी और मराठी में बर्तनों के लिए आज भी ‘बासन’ शब्द का प्रयोग होता है। स्पष्ट है कि पाणिनि के समय ;ईसा पूर्व पांचवी सदीद्ध में जुलाहा अपने कपड़े के बदले में बर्तन या औजार या अन्य कोई चीज प्राप्त करते थे। अष्टाध्यायी में एक गाय के बदले में क्रय की गई चीज को ‘गोपुच्छ’ कहा गया है। उस समय गायों का लेन-देन उनकी पूंछ पकड़कर गोदान करने की प्रथा हाल तक मौजूद रही थह। विनियम-माध्यम के रूप में गाय-बैल के अलावा दूसरे पालतू पशुओं का भी उपयोग होता था । काशिका में पांच और दस घोड़ों के बदले खरीदी गई दासियों को क्रमशः ‘पंचाश्वा’ और ‘दशाश्वा’ कहा गया है। इस तरह हम कह सकते हैं कि सभी प्राचीन सभ्यताओं में, भारत में भी, विनियम के माध्यम के रूप में धन्य, वस्त्रा, पशु आदि का व्यापक उपयोग हुआ है। धतुओं की मुद्राएं में आने पर भी अदला-बदली की व्यवस्था कायम रही, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
मुद्रा का मतलब केवल धतु के सिक्के ही नहीं रहा है। मुद्रा के रूप में कौड़ियों का प्रयोग प्राचीन काल से लेकर उन्नीसवीं सदी के अंत तक होता रहा हैµ न केवल भारत में बल्कि अप्रफीका और एशिया के अन्य कुछ देशों में भी। मुगलकालीन गुजरात में छोटी मुद्राओं का काम बादामों से लिया जाता था। अलास्का में मछली पकड़ने के कांटों का मुद्रा के रूप में इस्तेमाल होता था, वहीं पिफजी द्वीप-समूह में व्हेल के दांत का। तिब्बत में चायपत्तियों को दबाकर बनाई गई ईंटो का मुद्रा के यप में प्रयोग होता था। दक्षिणी प्रशांत महासागर के याप द्वीप में पत्थर के भारी पहियों का मुद्रा के यप में प्रचलन था। न्यू हैब्रिडीज द्वीप समूह ;प्रशांत महासागरद्ध में पक्षियों के हल्के पंखों का। संसार में वस्तु विनियम के कई अन्य रोचक और अनूठे तरीके प्रचलित थे। पश्चिमी अप्रफीका में हाथी की पूंछ मुद्रा के रूप में प्रचलित थी तो मयल प्रायद्वीप में वृक्ष की शाखा। प्राचीन चीन में मजदूरी का भुगतान पफावड़े, छुरे तथा अन्य किस्म के औजारों के जरिए होता था।
दरअसल प्राचीन काल में वस्तु-विनिमय में अनेक प्रकार की कठिनाइयां थीं। खासकर वहां जहां पशु विनिमय के मामले में। सभी गायों या सभी घोड़ों को समान मूल्य का मानना संभव नहीं था। ऐसी चीजों को टुकड़ों में विभाजित करना संभव नहीं था। इसके बदले में हर समय आवश्यक वस्तु का यथोचित मात्रा में प्राप्त होना आसान नहीं था।