‘तलाश’ भानगढ़ की

 


                                                              


 


                         


                                                                   


 


 


फल्म 'तलाश' के प्रचार के दौरान आमिर खान के एक प्रशंसक ने जब उनसे राजस्थान के रहस्यमयी भानगढ़ किले के बारे में पूछा तो आमिर ने उसकी कोई जानकारी से इंकार किया लेकिन इसके बाद वे अलवर के भानगढ़ किले को देखने पहुंच गए। वहां उनका सामना भूतों से हुआ या नहीं या पिफर वहां के रहस्य ने उन्हें रोमांचित किया या नहीं इसकी जानकारी तो नहीं है हां, आमेर के राजा भगवंत दास द्वारा 1573 में निर्मित यह किला एक बार पिफर से सुर्खियों में है। इस प्राचीन और भव्य किले में प्रवेश करने वाले लोगों को पहले ही चेतावनी दे दी जाती है कि वे सूर्यास्त के बाद इस किले ही नहीं आस-पास के क्षेत्रा से भी दूर रहें अन्यथा उनके साथ कुछ भी भयानक घट सकता है। ऐसा कहा जाता है कि इस किले में भूत प्रेत का बसेरा है। भारतीय पुरातत्व के द्वारा यह किला जो अब ध्ीरे-ध्ीरे खंडहर में तब्दील हो रहा है को संरक्षित कर दिया गया है। इस किले के खौपफ का आलम यह है कि जहां पुरातत्व विभाग ने हर संरक्षित क्षेत्रा में अपने ऑपिफस बनवाए हैं वहीं इस किले के संरक्षण के लिए विभाग ने अपना ऑपिफस इस पूरे क्षेत्रा से बाहर बनाया है। भानगढ़ के इतिहास की सच्चाई कुछ और है और इसके किस्से कुछ और।
  भानगढ़ का इतिहास कहता है कि इसे भगवंत दास ने इसे पूरी नगर योजना के साथ बसाया था। बाद में राजा मानसिंह के भाई माधेसिंह जो अकबर के दरबार में दीवान थे ने यहां आकर अपना राज जमाया और अपनी राजधनी बनाई। माधेसिंह के बाद छत्रासिंह भानगढ़ के शासक बने। एक यु( में मारे जाने के बाद भानगढ़ की रौनक घटने लगी। विरानी छाते देख छत्रासिंह के पुत्रा अजबसिंह ने भानगढ़ के पास ही अजबगढ़ नगर बसाया और वहीं रहने लगा। लेकिन अजबसिंह का बेटा हरिसिंह भानगढ़ में ही रहता था। इतिहास कहता है कि मुगलों के बढ़ते प्रभाव के कारण और संरक्षण के लिए हरिसिंह के दो बेटे औरंगजेब के समय मुसलमान बन गए और भानगढ़ पर राज करने लगे। आमेर के कछवाहा शासकों को यह गवारा नहीं था। मुगलों के कमजोर पड़ते ही सवाई जयसिंह ने 1720 में इन दोनों को मारकर भानगढ़ पर कब्जा कर लिया और इसे अपनी रियासत में मिला लिया। लेकिन इलाके में पानी का संकट बढ़ता गया और 1783 के अकाल ने किले और आबादी को पूरी तरह उजाड़ दिया। समय गुजरता गया इतिहास अब किंवदंतियों की कहानी बनने लगा।
  भानगढ़ को भूतहा रूप् देने में वक्त के साथ-साथ आस-पास के लोग अपने बुजुर्गों के बताए सच्चे झूठे अनुभवों को सत्य कथा की तरह प्रचारित करते हैं। इन किंवदंतियों को स्थानीय लोगों ने इतना पुख्ता कर दिया कि राजस्थान में 'भूतों का भानगढ़' नाम से एक राजस्थानी पिफल्म का प्रदर्शन भी हो चुका है। इन्हीं किवदंतियों में एक भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती से जुड़ी है। कहते हैं अरावली की इन्हीं पहाड़ियों में सिंघिया नाम का एक तांत्रिक अपने तंत्रा-मंत्रा और टोटके के लिए विख्यात था। वह रत्नावती को मन ही मन चाहने लगा। राजकुमारी को पाने के लिए उसने महल की एक दासी का सहारा लिया और सिर में लगाने वाला एक अभिमंत्रित तेल रत्नावती के सिर में लगाने के लिए भेजा। कहा जाता है रत्नावती भी तंत्रा-मंत्रा और टोटका करना जानती थी। उसने टोटके वाले तेल को पहचान लिया और तेल को एक बड़ी शिला पर डाल दिया। शिला तांत्रिक की ओर उड़ चली। चट्टान को अपनी ओर आते देख तांत्रिक बौखला गया। शिला से कुचलकर मरने से पहले एक तंत्रा किया और शिला को समूचे भानगढ़ को बर्बाद करने का आदेश दिया। शिला ने रातों रात भानगढ़ के महल, बाजारों और घरों को खंडहर में तब्दील कर दिया। तांत्रिक का तंत्रा यहां के मंदिरों और धर्मिक स्थलों पर नहीं चला इसलिए वे बच गए। लोगों का मानना है कि रत्नावती और तांत्रिक के आपसी टकराव के कारण रातों रात हुई मौतों के कारण यह जगह शापित हो गई और आज भी यहां उन लोगों की आत्माएं विचरण करती हैं। स्थानीय लोग कहते हैं कि रात में इस किले से तरह-तरह की भयानक आवाजें आती हैं। और यह भी  िकइस किले में जो भी गया वह लौटकर वापस नहीं आया। इसका राज क्या है यह कोई नहीं जान पाया।
  ब्हरहाल इन किंवदंतियों से हटकर इस ऐतिहासिक किले खूबसूरती पर एक नजर डालें। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इसे अपने अध्ीन लेकर इसके अवशेषों को संरक्षण किया। वर्तमान में यह एक खूबसूरत पर्यटन स्थल बन गया है। तीन ओर प्राचीर से घिरे इस कस्बे में जगह-जगह हवेलियां और अवशेष दिखाई देते हैं। हनुमान गेट से प्रवेश करने के बाद बाएं हाथ से पहाड़ी की ओर एक ठोस रास्ता महल तक जाता है जिसके दोनों ओर कभी दो मंजिला बिना छत वाली दुकानें थीं। दुकानों के साथ मकानों के भी अवशेष हैं। इस बाजार को जौहरी बाजार का नाम दिया गया है। दोनों तरपफ दुकानों के बीच 30 से 40 पफीट का चौड़ा रास्ता था। यहां भूत बंगले के अलावा मोडिया हवेली, नर्तकियों की हवेली, सेवड़ा छतरियां, रानी रत्नावती महल, केवड़ा की नाल आदि दर्शनीय स्थल हैं। इसके अलावा अजमेरी गेट, लाहौरी गेट, मंगला माता मंथ्छश्र, केशोराय मंदिर, पुरोहितजी की हवेली भी दर्शनीय हैं। जौहरी बजार पार करने के बाद एक पहाड़ी नाला गुजरता है। जिसके दोनों ओर घने पेड़ हैं। ये वृक्ष भी रहस्यमयी ढ़ंग से बल खाए और तुड़े-मुड़े नजर आते हैं। नाले से आगे चलने पर महल परिसर का त्रिपोलिया गेट आता है। जिसमें प्रवेश के साथ उफंचे नीचे ढलानों पर शानदार बाग और मंदिर, हवेलियां, कुंड आदि नजर आते हैं। एक चौरस स्थल पर गोपीनाथजी का मंदिर है। पास में सामंतों की बड़ी हवेलियां भी हैं। अंग्रेजी के 'जेड' आकार का एक रास्ता मुख्य महल की ओर जाता है। कहा जाता है यह महल सात मंजिला था लेकिन वर्तमान में इसकी तीन मंजिलें ही अस्तित्व में है। यहां की हवेलियां, महल, मंदिर अन्य संरचना नागर शैली में बने हैं। इतिहासकार एडवोकेट हरिशंकर गोयल के अनुसार भानगढ़ में उस समय 9942 परिवार परकोटे के भीतर निवास करते थे।
  स्थानीय लोगों में अब भी यह धरणा चली आ रही है कि भानगढ़ एक शापित स्थान है लेकिन यहां ऐसा कुछ भी नहीं है। हां खंडहरों की खामोशी जरूर बेचैन करती है। पर्यटन की दृष्टि से यह एक बेहद खूबसूरत जगह है। रहस्य और रोमांच यहां की कथाओं में है ही। अरावली की गोद में सोया यह शहर आपकी राह देख रहा है। जब लौटेंगे तो एक खूबसूरत याद स्मृतियों में शामिल होगी और भ्रम के भूत भाग जाएंगे।