तब कौड़ियों के भी दाम थे
मुद्राओं का आविष्कार होने से पहले मानव के लगभग सभी काम वस्तु-विनियम यानी चीजों की अदला-बदली से होती थी। पाषाण काल में अदला-बदली के लिए कठोर पत्थर के औजार-हथियार, मांस, अन्न, पशु, चमड़ा आदि चीजों का उपयोग होता था। प्रायः सभी प्राचीन सभ्यताओं मे…
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मुझे साहित्य और बड़े भाई को कला दी
मेरे बाबूजी  मुझे साहित्य और बड़े भाई को कला दी डॉ. हरिकृष्ण देवसरे                                                            मेरे बाबूजी कवि, लेखक और चित्राकार तीनों थे। उनकी बचपन में शिक्षा उफर्दू में हुई थी। उन्होंने फारसी भी पढ़ी थी। पढ़ने-लिखने के प्रति उनकी रुचि और लगन का अंदाजा आप इससे लगा सकत…
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मील के घेरे में कान चीरता अट्टहास
मील के घेरे में कान चीरता अट्टहास                                                                                आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के प्रिय शिष्य और शायद सबसे प्रिय शिष्य विश्वनाथ त्रिपाठी की पुस्तक 'व्योमकेश दरवेश' पढ़ रहा। हर पंक्ति में यादों का जादू था। एक रोचकता। सो इस पत्र…
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विन्ध्यवासिनी दत्त त्रिपाठी की कविताएं
आज भी खूंटे बंधी है नाव रात भर खेता रहा मैं पार जाने को सुबह देखा तो लगा खूंटे बंधी है नाव        और थककर चूर मेरे हाथ मेरे पांव        आज भी खूंटे बंधी है नाव जिंदगी अंधी अपेक्षा बन अधूरी रह गयी पास रहकर भी, हमारे बीच दूरी रह गई        जुगनुओं की रोशनी में        आज भी डूबे पड़े हैं गांव दूर से आ…
षास्त्रीय पद्धति से बंधे कलाकार
पुरावार्ता डेस्क                                             कला के क्षेत्र में पालकालीन कला षैली का अपना एक विषिश्ट महत्व है। बिहार और बंगाल की प्रतिभा ने कला की इस नवीन षैली को जन्म दिया। इसे पूर्वी भारत की मगध बंग षैली भी कहा गया है क्योंकि यह पाल वंषीय षासकों के काल में पनपी और विकसित हुई इसल…
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